Tuesday, September 13, 2011

चलो हम भी मिलें जिस्मों से परे
इसी जग में कहीं, रस्मों से परे
लफ़्ज़ों में कहीं, कसमों से परे
चलो हम भी मिलें जिस्मों से परे

जहां आसमान के दरिया में
इक कंकर दे कर मारूँ मैं
फिर तारे झर-झर कर के गिरें
और चाँद को दिल में उतारूं मैं
रस्मों से परे, कसमों से परे
लफ़्ज़ों में कहीं, सपनों में कहीं
चलो हम भी मिलें, जिस्मों से परे

जहां कैनवास के रंगों में
तुम मुझको उतार के ले आओ
मैं रोज़ सफ़र में रहती हूँ
तुम मुझ को पुकार के ले आओ
लफ़्ज़ों में कहीं, सपनों में कहीं
रस्मों से परे, कसमों से परे
चलो हम भी मिलें, जिस्मों से परे

तुम अपने लफ़्ज़ों में छुप कर
रेशम में पिरो लेना मुझको
और अपने प्यार की बारिश में
थोडा सा भिगो देना मुझको

यूं ही चलते हम चले जाएँगे
गैरों से परे, अपनों से परे
रस्मों से परे, कसमों से परे
लफ़्ज़ों में कहीं, सपनों में कहीं
चलो हम भी मिलें, जिस्मों से परे


-रेनू-